4391
ज़िन्दगी
रोज़ कोई ना
कोई,
ताज़ा सफ़र
मांगती हैं...
और थकान शामको,
अपना घर
मांगती हैं.......
4392
बिना लिबास आए थे,
इस जहाँमें;
बस एक कफ़नकी खातिर,
इतना सफ़र करना
पड़ा.......
4393
माना थोडा मुश्किल
हैं ये सफ़र,
पर तुझ तक
पहुँचना ज़िद हैं मेरी...!
4394
हाथ तो उठाया
था आपने,
अगर नजरे भी
उठा लेती...
कोई और न्
थाम लेता इसे,
तुम मेरी हमसफ़र
बन जातीं...
4395
ज़िन्दगीकी राहोंमें मुस्कराते रहो
हमेशा,
क्योंकि...
उदास दिलोंको हमदर्द
तो मिलते हैं,
हमसफ़र नहीं...