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17 February 2020

5486 - 5490 दिल दुआ मजबूरी कसूर परख मुश्किल इम्तिहां हताश शायरी


5486
ये ग़लत कहाँ किसीने,
कि मेरा पता नहीं हैं;
मुझे ढूँढनेकी हद तक,
कोई ढूँढता नहीं हैं...!

5487
झुका लेता हूँ अपना सर,
हर मज़हबके आगे...
पता नहीं किस दुआमें,
तुझे मेरा होना लिखा हो...!

5488
पता नहीं,
कितने बचेंगे हम...
जब हममें से तुम,
घटाए जाओगे.......

5489
मैने रबसे कहाँ, वो छोड़के चली गई;
पता नहीं उसकी, क्या मजबूरी थी...
रबने कहाँ इसमें, उसका कोई कसूर नहीं;
यह कहानी तो मैने, लिखीही अधूरी थी...

5490
पता नहीं कैसे परखता हैं,
मेरा खुदा मुझे...
इम्तिहां भी मुश्किलही लेता हैं,
और हताश भी होने नहीं देता...!