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21 August 2020

6361 - 6365 दिल दुनिया हौसला मुसाफिर वक़्त दर्द दवा शायरी

 

6361
कोई क्यूँ किसीका लुभाए दिल,
कोई क्या किसीसे लगाए दिल;
वो जो बेचते थे दवा--दिल,
वो दुकान अपनी बढ़ा गए...
                         बहादुर शाह ज़फ़र

6362
हौसला मत हार,
गिरकर ऐ मुसाफिर...
अगर दर्द यहाँ मिला हैं तो,
दवा भी यहीं मिलेगी.......

6363
मैं खुद कभी बेचा करता था,
दर्द--दिलकी दवा...
आज वक़्त मुझे अपनी ही,
दुकानपर ले आया.......

6364
इक दर्द-ए-मोहब्बत हैं,
कि जाता नहीं, वर्ना.......
जिस दर्दकी ढूँडे कोई,
दुनियामें दवा हैं.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

6365
उल्टी हो गईं सब तदबीरें,
कुछ दवा ने काम किया...
देखा इस बीमारी--दिलने,
आख़िर काम तमाम किया...
                                मीर तक़ी मीर