6361
कोई क्यूँ किसीका लुभाए दिल,
कोई क्या किसीसे लगाए दिल;
वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल,
वो दुकान अपनी बढ़ा गए...
बहादुर शाह ज़फ़र
6362
हौसला मत हार,
गिरकर ऐ मुसाफिर...
अगर दर्द यहाँ
मिला हैं तो,
दवा भी यहीं
मिलेगी.......
6363
मैं खुद कभी बेचा करता था,
दर्द-ए-दिलकी दवा...
आज वक़्त मुझे अपनी ही,
दुकानपर ले आया.......
6364
इक दर्द-ए-मोहब्बत हैं,
कि जाता नहीं,
वर्ना.......
जिस दर्दकी ढूँडे कोई,
दुनियामें
दवा हैं.......
मुसहफ़ी
ग़ुलाम हमदानी
6365
उल्टी हो गईं सब तदबीरें,
कुछ न दवा ने काम किया...
देखा इस बीमारी-ए-दिलने,
आख़िर काम तमाम किया...
मीर तक़ी मीर