7206
कुछ समझकर,
उस मह-ए-ख़ूबीसे की थी दोस्ती...
ये न समझे थे कि,
दुश्मन आसमाँ हो जाएगा.......
इम्दाद इमाम असर
7207दोस्तोंसे इस क़दर,सदमे उठाए जानपर...दिलसे दुश्मनकी अदावतका,गिला जाता रहा.......हैदर अली आतिश
7208
तरतीब दे रहा था,
मैं फ़हरिस्त-ए-दुश्मनान...
यारोंने इतनी बातपें,
ख़ंजर उठा लिया.......
फ़ना निज़ामी कानपुरी
7209हम दोस्तोसें इतना प्यार करते हैं...ये देखकर दुश्मनभी कहते हैं की,काश हमभी इनके दोस्त होते.......!
7210
हम तो दुश्मनीभी,
दुश्मनकी औकात देखकर करते हैं...
बच्चोंको छोड देते हैं और,
बडोंको तोड देते हैं.......