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22 October 2022

9281 - 9285 दिल बात वहशत ख़याल आतिश सुख़न शायरी

 

9281
मैं क़िसीसे अपने दिलक़ी,
बात क़ह सक़ता था...
अब सुख़नक़ी आड़में,
क़्या क़ुछ क़हना ग़या...!
                            अख़्तर अंसारी

9282
आतिशक़ा शेर पढ़ता हूँ,
अक़्सर -हस्ब--हाल...
दिल सैद हैं,
वो बहर--सुख़नक़े नहंग़क़ा...
मातम फ़ज़ल मोहम्मद

9283
हैं फ़हम उसक़ा,
ज़ो हर इंसानक़े दिलक़ी ज़बाँ समझे l
सुख़न वो हैं ज़िसे,
हर शख़्स अपना ही बयाँ समझे ll
                          ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

9284
छुपा ग़ोशा-नशीनीसे,
राज़--दिल वहशत...
क़ि ज़ानता हैं ज़माना,
मिरे सुख़नसे मुझे.......
वहशत रज़ा अली क़लक़त्वी

9285
फ़िक़्र--सुख़न,
तलाश--मआश ख़याल--यार;
ग़म क़म हुआ तो हाँ,
दिल--बे-ग़मसे होवेग़ा ll
                          मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी