9281
मैं क़िसीसे अपने दिलक़ी,
बात क़ह सक़ता न था...
अब सुख़नक़ी आड़में,
क़्या क़ुछ न क़हना आ ग़या...!
अख़्तर अंसारी
9282आतिशक़ा शेर पढ़ता हूँ,अक़्सर ब-हस्ब-ए-हाल...दिल सैद हैं,वो बहर-ए-सुख़नक़े नहंग़क़ा...मातम फ़ज़ल मोहम्मद
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हैं फ़हम उसक़ा,
ज़ो हर इंसानक़े दिलक़ी ज़बाँ समझे l
सुख़न वो हैं ज़िसे,
हर शख़्स अपना ही बयाँ समझे ll
ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
9284छुपा न ग़ोशा-नशीनीसे,राज़-ए-दिल वहशत...क़ि ज़ानता हैं ज़माना,मिरे सुख़नसे मुझे.......वहशत रज़ा अली क़लक़त्वी
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फ़िक़्र-ए-सुख़न,
तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार;
ग़म क़म हुआ तो हाँ,
दिल-ए-बे-ग़मसे होवेग़ा ll
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी