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15 April 2021

7416 - 7420 दिल मंज़िल क़दम सफ़र तबाही दामन मुस्क़ुरा ज़माना ज़माने शायरी

 

7416
यह इन्क़िलाबे-दौरे-ज़माना,
तो देख़िए...
मंज़िल पै वो मिले,
ज़ो शरीक़े-सफ़र थे...!
                            अनवर साबरी

7417
ज़माना उसक़ी तबाही पै,
क़िस लिये राये...?
ज़ो आप अपनी तबाही पै,
मुस्क़ुराता हैं.......!!!

7418
लुफ़्ते बहार क़ुछ नहीं,
गो हैं वहीं बहार...
दिल क़्या उज़ड़ गया क़ि,
ज़माना उज़ड़ गया.......
                     आर्जू लख़नवी

7419
क़्या ख़बर हैं उनक़ो क़े,
दामन भी भड़क़ उठते हैं...
ज़ो ज़मानेक़ी हवाओंसे,
बचाते हैं चिराग़...
फ़राज़

7420
यह हादिसे ज़ो इक़-इक़ क़दम पै हाइल हैं,
ख़ुद एक़ दिन तेरे क़दमोंक़ा आसरा लेंगे;
ज़माना अगर ची--ज़बीं हैं तो क़्या हैं,
हम इस इताब पै क़ुछ और मुस्क़ुरा लेंगे ll
                                                रविश सिद्दक़ी