6706
उसे शक हैं,
हमारी मुहब्बतपर...
लेकिन गौर नहीं करती,
मेहँदीका रंग कितना गहरा निख़रा हैं !!!
6707
जमानेके
आगे,
दिलका हाल छुपाये
बैठे हैं...
नादान हैं वो
जो मेहँदीमें,
मेरा नाम छुपाये
बैठे हैं.......
चुराके दिल मेरा,
मुठ्ठीमें छिपाए बैठे हैं...
और बहाना ये हैं कि,
मेहँदी लगाए बैठे हैं...!
6709
मेहँदी जो मिटकर,
हाथोंपर
रंग लाती हैं...
दो दिलोंको मिलाकर,
कितनी खुशियाँ दे जाती
हैं...
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मैं तेरे हाथोंपर,
रच जाऊँगा मेहँदीकी तरह...
तू मेरा नाम कभी,
हाथोंपर
सजा कर तो
देख...!