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17 September 2020

6496 - 6500 दिल मुहब्बत महसूस तकलीफ वजूद बंदगी आदत शिद्दत गजब गम वक़्त कदम फितरत शायरी

 

6496
दिल हैं कदमोंपें किसीके,
सर झुका हो, या हो...
बंदगी तो अपनी फ़ितरत हैं,
ख़ुदा हो, या हो.......

6497
बदलना वक़्तकी फ़ितरतमें हैं,
ये बदल ही जायेगा l
आज गमकी घटायें दिख रही हैं,
कलको सूरज निकल आयेगा ll

6498
अजीबसी आदत और,
गजबकी फितरत हैं मेरी...
मुहब्बत हो या नफरत,
बहुत शिद्दतसे करता हूँ...!

6499
जो मुँह तक उड़ रही थी,
अब लिपटी हैं पाँवसे...
बारिश क्या हुई मिट्टीकी,
फितरत बदल गई.......!

6500
मेरी फितरतमें नहीं,
अपना गम बयाँ करना;
अगर तेरे वजूदका हिस्सा हूँ,
तो महसूस कर तकलीफ मेरी...