6671
उतरही आते हैं,
कलमके सहारे कागजपर...
तेरे ख़्याल कमबख्त,
जिद्दी बहोत हैं.......!
6672
तेरे ख़्यालसे ही,
एक रौनक आ
जाती हैं दिलमें;
तुम रूबरू आओगे तो,
जाने क्या आलम
होगा...!!!
6673
मेरी हर नज़रमें बसे हो तुम,
मेरी हर कलमपर लिखे हो तुम...
तुम्हें सोच लूँ, तो शायरी मेरी,
ना लिख सकूं, तो वो ख़्याल हो तुम...
6674
लादकर तेरी यादोंका
बस्ता,
झुकने लगी हैं,
पीठ ख़्यालोंकी...
6675
मिला वो लुत्फ हमको,
डूबकर उनके ख़्यालोंमें...
कहाँ अब फर्क बाकी हैं,
अंधेरे और उजालोंमें.......!