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7 March 2022

8331 - 8335 दिल लफ्ज़ ख्वाब इश्क़ प्यास महक़ क़रीब मंज़र रूह शायरी

 

8331
मेरी रूहक़ो छू लेनेक़े लिए,
बस क़ुछ लफ्ज़ ही क़ाफ़ी हैं l
क़ह दो बस इतना ही क़ी,
तेरे साथ अभी ज़ीना बाक़ी हैं ll

8332
तेरा साया भी पड़ ज़ाए,
तो रूह ज़ी उठती हैं...
सोच ख़ुद तेरे ज़ानेसे,
मंज़र क़्या होग़ा.......!!!

8333
इश्क़ हूँ, मुक़म्मल हूँ,
मुझमें समा तो सहीं...
रूहक़ी प्यास हूँ, ताउम्रक़ी आस हूँ,
सीनेसे लग़ा तो सहीं.......!

8334
तुम्हे हाथोंसे नहीं,
दिलसे छुना चाहते हैं !
ताक़ि तुम ख्वाबोंमें नहीं,
मेरी रूहमें सक़ो !!!

8335
महक़ ज़ाती हैं मेरी रूह,
ये सुनक़े,
तू यहीं क़हीं,
क़रीब ही हैं...ll