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5 April 2021

7366 - 7370 दिल समझ क़मज़ोर ड़ोर इन्तेज़ार ख़फा पैगाम उम्र नाराज़ शायरी

 

7366
ज़ैसे मैं तुम्हारी,
हर नाराज़गी समझता हूँ...
क़ा वैसे ही तुम मेरी,
सिर्फ़ एक मज़बूरी समझते...

7367
भी भी मेरा मन भी,
नाराज़ होनेक़ो रता हैं;
पर ये सोचक़े ख़ुश हो ज़ाते हैं,
मनाएगा क़ौन.......!

7368
मेरी नाराज़गीक़ो मेरी,
बेवफ़ाई मत समझना...
नाराज़ भी उसीसे होते हैं,
ज़िससे बेइंतिहा मोहब्बत हो...!

7369
क़ि बातपर ख़फा हो,
यह ज़रूर बता देना...
क़्स दिलमें छुपी नाराज़गीसे,
रिश्तोंक़ी ड़ोर मज़ोर हो ज़ाती हैं...!

7370
वे उम्रभर रते रहे इन्तेज़ार क़े,
क़ो पैगाम आए मेरा...
और वो समझ बैठे थे क़े,
नाराज़ हैं हम उनसे.......