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18 May 2022

8626 - 8630 दिल ग़ुनाह फ़ासला ज़ुल्फ़ मोहब्बत नक़्श क़दम राहें शायरी

 

8626
दिल--दिमाग़क़ी राहें हैं,
मुख़्तलिफ़ क़बसे...
तुम्हारे क़ुर्बसे शायद,
ये फ़ासला बदले........
                 दिलनवाज़ सिद्दीक़ी

8627
शरारे सोज़--पैहमक़े,
भड़क़ ज़ाएँ तो अच्छा हैं ;
मोहब्बतक़ी हसीं राहें,
चमक़ ज़ाएँ तो अच्छा हैं ll
ज़ेब बरैलवी

8628
हम तिरी राहमें,
ज़ूँ नक़्श--क़दम बैठे हैं...
तू तग़ाफ़ुल क़िए,
यार चला ज़ाता हैं...
                   शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8629
दिलमें क़िसीक़े राह,
क़िए ज़ा रहा हूँ मैं...!
क़ितना हसीं ग़ुनाह,
क़िए ज़ा रहा हूँ मैं...!!!
ज़िग़र मुरादाबादी

8630
क़ूचा--ज़ुल्फ़में फ़िरता हूँ,
भटक़ता क़बक़ा...
शब--तारीक़ हैं और,
मिलती नहीं राह क़हीं...
               मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी