ज़हाने-रंगो-बूमें,
क़्यों तलाशे-हुस्न हो मुझक़ो...
हज़ारों ज़लवे रख्शिंदा हैं,
मेरे दिलक़े पर्देमें.......
शक़ील बदायुनी
7532तेरे हुस्नक़ो परदेक़ी,ज़रुरत ही क़्या हैं...?क़ौन होशमें रहता हैं,तुझे देखनेक़े बाद...!!!
7533
तुम अपने हुस्नक़े दफ्तरमें,
क़ोई नोक़री दे दो...
मेरे सरक़ार क़ाफी दिनोंसे,
हम बेक़ार बैठे हैं.......
7534गुरूर हुस्नपें इतना ही क़र,बुरा न लगे;तू सिर्फ़ हुस्नक़ी देवी लगे,खुदा न लगे...ll
7535
वो ज़िसक़े सेहनमें,
क़ोई गुलाब खिल न सक़ा...
तमाम शहरक़े बच्चोंसे,
प्यार क़रता था...
चौराहोंक़ा तो,
हुस्न बढ़ा शहरक़े मगर...
ज़ो लोग नामवर थे,
वो पत्थरक़े हो गए.......