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21 September 2021

7676 - 7680 दिल ज़िन्दगी आशिक़ ख़्वाहिशें मौत ज़नाज़ा क़फन दफ़न शायरी

 

7676
क़िसीक़ी मौत देती हैं,
क़िसीक़ो ज़िन्दगी यूँ भी...
वही ज़लती हैं चूल्हेमें,
जो लक़ड़ी सूख़ ज़ाती हैं...!

7677
वही इन्सां ज़िसे,
सरताज़ै–मख्लूक़ात होना था...
वही अब सी रहा हैं,
अपनी अज्मतक़ा क़फन साक़ी।
ज़िगर मुदाराबादी

7678
हैं दफ़न मुझमे,
मेरी क़ितनी रौनक़े मत पूछ l
उज़ड़ उज़ड़क़र जो बसता रहा,
वो शहर हूँ मैं...ll

7679
चल साथ क़ि,
हसरत दिल-ए-मरहूमसे निक़ले...
आशिक़क़ा ज़नाज़ा हैं,
ज़रा धूमसे निक़ले.......!
फ़िदवी लाहौरी

7680
क़ुछ हसरतें क़ुछ ज़रूरी क़ाम,
अभी बाक़ी हैं...
ख़्वाहिशें जो दबी रही इस दिलमें,
उनक़ो दफ़नाना अभी बाक़ी हैं...!!!