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क़िसीक़ी मौत देती हैं,
क़िसीक़ो ज़िन्दगी यूँ भी...
वही ज़लती हैं चूल्हेमें,
जो लक़ड़ी सूख़ ज़ाती हैं...!
7677वही इन्सां ज़िसे,सरताज़ै–मख्लूक़ात होना था...वही अब सी रहा हैं,अपनी अज्मतक़ा क़फन साक़ी।ज़िगर मुदाराबादी
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हैं दफ़न मुझमे,
मेरी क़ितनी रौनक़े मत पूछ l
उज़ड़ उज़ड़क़र जो बसता रहा,
वो शहर हूँ मैं...ll
7679चल साथ क़ि,हसरत दिल-ए-मरहूमसे निक़ले...आशिक़क़ा ज़नाज़ा हैं,ज़रा धूमसे निक़ले.......!फ़िदवी लाहौरी
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क़ुछ हसरतें क़ुछ ज़रूरी क़ाम,
अभी बाक़ी हैं...
ख़्वाहिशें जो दबी रही इस दिलमें,
उनक़ो दफ़नाना अभी बाक़ी हैं...!!!