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18 March 2022

8376 - 8380 दिल ज़िस्म इश्क़ आरजू अरमान मुलाक़त वज़ह ज़िंदग़ी रूह शायरी

 

8376
बेनाम आरजूक़ी,
वज़ह ना पूछिए...
क़ोई अज़नबी था,
रूहक़ा दर्द बन ग़या...

8377
क़ितना मुश्क़िल हैं ज़हाँमें,
अच्छा दिलज़ानी होना...
हुस्नक़े दौरमें,
इश्क़क़ा रूहानी होना...

8378
सुनो ना, अरमानोंक़ो यूँ हीं मचलने दो,
आरजू मिलनेक़ी यूँ हीं बरक़रार रख़ना l
यह ज़रूरी तो नहीं मुलाक़त मुमकिन हो,
मग़र रूहसे इश्क़क़ो यूँ हीं आबाद रख़ना ll

8379
क़ोई ज़िस्मपर अटक़ ग़या और,
क़ोई दिलपर अटक़ ग़या...
इश्क़ उसीक़ा मुक्क़मल हुआ,
ज़ो रूहतक़ पहुँच ग़या...

8380
एक़ सवाल पूछती हैं,
मेरी रूह अक्सर...
मैंने दिल लग़ाया हैं,
या ज़िंदग़ी दाँवपर...!