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27 March 2022

8426 - 8430 दिल ज़िस्म ख़्वाहिश रंज़िश पहचान ज़ान शायरी

 

8426
ख़ाक़ थी और,
ज़िस्मोंज़ान क़हते रहे...
चंद ईटोंक़ो ही,
मक़ान क़हते रहे...

8427
ना क़िसीक़ा दिल चाहिए,
ना क़िसीक़ी ज़ान चाहिए...
ज़ो मुझे समझ सक़े,
बस एक़ ऐसा इंसान चाहिए...

8428
ख़ुदा, एक़ हीं ख़्वाहिश हैं,
क़ी मैं ज़ब ज़ानसे ज़ाऊँ...
ज़िस शानसे आया था,
उसी शानसे ज़ाऊँ.......

8429
आख़िरसे मुझे छोड़क़े,
ज़ानेक़े लिए आ l
रंज़िश सहीं ll

8430
झुक़ते वो हैं,
ज़िनमें ज़ान होती हैं...
अक़ड़ना मुर्दोंक़ी,
पहचान होती हैं.......