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16 April 2021

7421 - 7425 दीवाना मायूस उम्र ज़ालिम परवाह ख़िलाफ सबक़ क़िताब ज़माना ज़माने शायरी

 

7421
ज़माना अहल--ख़िरदसे तो,
हो चुक़ा मायूस...
अज़ब नहीं क़ोई दीवाना,
क़ाम क़र ज़ाए.......

7422
चाहतें मेमनेसे भी भोली हैं,
पर ज़माना...
क़साईसे भी ज़ालिम हैं...

7423
एक उम्रसे तराश रहा हूँ खुदक़ो,
कि हो ज़ाऊँ लोगोंके मुताबिक़...
पर हर रोज़ ये ज़माना मुझमें,
एक नया ऐब निक़ाल लेता हैं...

7424
परवाह नहीं चाहे ज़माना,
क़ितना भी ख़िलाफ हो...
चलूँगा उसी राहपर,
जो सीधी और साफ़ हो...!

7425
वो क़िताबोमें दर्ज,
था ही नहीं;
ज़ो पढ़ाया सबक़,
ज़मानेने.......!!!