5941
हमने सोचा के,
दो चार दिनकी
बात होगी, लेकिन...
तेरे ग़मसे तो
उम्रभरका,
रिश्ता निकल आया.......
5942
दुनिया भी मिली,
ग़म-ए-दुनिया
भी मिली हैं...
वो क्यूँ नहीं मिलता
जिसे,
माँगा था खुदासे.......
5943
जब्त-ए-ग़म कोई,
आसमान काम नहीं
फ़राज़...
आग होते हैं
वो आँसू,
जो पिये जाते
हैं....
5944
मौत-ओ-हस्तीकी
कश्मकशमें,
कटी तमाम उम्र....
ग़मने जीने न
दिया,
शौक़ ने मरने
न दिया.......!
5945
मुद्दतसे
उसकी छाँवमें,
बैठा नहीं कोई...
वो सायादार पेड़,
इसी ग़ममें
मर गया.......
गुलज़ार