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एक मुद्दतसे मिरी माँ,
नहीं सोई ताबिश...
मैने इक बार कहा था,
मुझे डर लग़ता हैं.......
अब्बास ताबिश
6662
करवट-दर-करवट
रातभर,
खुदसे कहता रहा...
सो ग़या हूँ
मैं.......
6663
इस दुनियामें लाखों लोग़ रहते हैं,
कोई हँसता हैं, तो कोई रोता हैं;
पर सबसे सुखी वही होता हैं,
जो शामको दो जाम पीके सोता हैं...
6664
हर शख्स,
अपने ग़ममें खोया हैं,
और जिसे ग़म
नहीं,
वो कब्रमें सोया हैं.......
6665
रातभर मुझको ग़म-ए-यारने सोने न दिया,
सुबहको खौफ़-ए-शब-ए-तारने सोने न दिया...
शमाकी तरह मेरी रात कटी सूलीपर,
चैनसे याद-ए-कद-ए-यारने सोने न
दिया...