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20 December 2021

7981 - 7985 दुनिया क़सम क़सूर हक़ीक़त ख़ता सफ़ाई बदनाम ग़ुनाह इल्ज़ाम शायरी

 

7981
इल्ज़ाम क़ई,
हो सक़ते हैं मुझपर...
पर क़सम ख़ुदाक़ी,
क़सूर मेरा क़ुछ भी नहीं...

7982
बुरे नहीं थे,
बस हमपर बुरे होनेक़ा,
नाम लग़ा था l
अब बन ग़ए हैं,
वैसे ही ज़ैसा हमपर,
इल्ज़ाम लग़ा था ll

7983
दुनियाक़ो मेरी हक़ीक़तक़ा,
पता क़ुछ भी नहीं...
इल्ज़ाम हज़ारो हैं पर,
ख़ता क़ुछ भी नहीं.......

7984
बस यहीं सोचक़र,
क़ोई सफ़ाई नहीं दी हमने...
क़ि इल्ज़ाम झूठे ही सहीं,
पर लग़ाये तो मेरे अपने हैं...

7985
नाम क़म हैं,
हम बदनाम ज़्यादा हैं...
ग़ुनाह क़म हमारे हमपर,
इल्ज़ाम ज़्यादा हैं.......