1966
बहुत रोये वो हमारे पास आकर,
जब एहसास हुआ उन्हें अपनी गलतीका,
चुप तो करा देते हम अगर,
चेहरेपें हमारे कफ़न ना होता...
1967
तेरी यादोंने कर लिया हैं,
मेरे दिलो-दिमागपें कब्ज़ा,
अब किसी गमको...
अंदर आनेकी इजाजत ही नहीं !!!
1968
धडकनोंको कुछ तो,
काबूमें कर ए दिल...
अभी तो सिर्फ पलकें झुकाई हैं...
मुस्कुराना अभी बाकी हैं उनका.......
1969
हमें तो प्यारके,
दो लफ्ज भी नसीब नहीं...
और बदनाम ऐसे हैं;
जैसे इश्कके बादशाह थे हम...
1970
तो क्या हुआ जो आप,
नहीं मिलते हमसे...!
मिला तो रब भी नहीं हमें,
मगर इबादत तो बंद नहीं की...!