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15 October 2020

6636 - 6640 प्यार हकीकत दीदार लम्हा रूह सैलाब शौक ख़्वाब शायरी

 

6636
तेरा मिलना,
मेरे लिए ख़्वाब सहीं...
पर तुझे भूलूँ मैं,
ऐसा कोई लम्हा मेरे पास नहीं...!

6637
सैलाबके सैलाब गुजर जाते हैं,
गिरदाबके गिरदाब गुजर जाते हैं,
आलमे-हवादिससे परीशाँ क्यों हो...
यह ख़्वाब हैं और ख़्वाब गुजर जाते हैं...
अब्दुल हमीद अदम

6638
सुनता हूँ बड़े शौकसे,
अफसाना--हस्ती...
कुछ ख़्वाब हैं कुछ अस्ल हैं,
कुछ तर्जे-अदा हैं.......
                          असगर गौण्डवी

6639
कुछ हसीं ख़्वाब,
और कुछ आँसू;
उम्र भरकी मेरी,
यही कमाई हैं ll
मजहर इमाम

6640
ख़्वाब तो वो हैं जिसका,
हकीकतमें भी दीदार हो...
कोई मिले तो इस कदर मिले,
जिसे मुझसे ही नहीं,
मेरी रूहसे भी प्यार हो.......!