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15 November 2017

1961 - 1965 दिल प्यार इश्क याद किस्मत ज़मीन फितरत आँसु दर्द दुआ लफ़्ज़ कबूल बेकरार जुदाई मोहताज साँस शायरी


1961
ये तो ज़मीनकी फितरत हैं की,
वो हर चीज़को मिटा देती हैं,
वरना तेरी यादमें गिरने वाले,
आँसुओंका अलग समंदर होता…!!

1962
दुआओंको भी,
अजीब इश्क हैं मुझसे…
वो कबूल तक नहीं होती,
मुझसे जुदा होनेके डरसे।।

1963
तलब ऐसी... कि,
साँसोमें समालूँ तुझे...
किस्मत ऐसी कि,
देखनेको मोहताज हूँ तुझे.......

1964
सुनो, ये जो तुम... लफ़्ज़ोंसे,
बार बार चोट देती हो ना...
दर्द वहीं होता हैं...
जहाँ तुम रहती हो.......

1965
आपकी याद दिलको बेकरार करती हैं;
नज़र तलाश आपको बार-बार करती हैं;
गिला नहीं जो हम हैं दूर आपसे;
हमारी तो जुदाई भी आपसे प्यार करती हैं...