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2 August 2017

1601 - 1605 दिल काबिल अफसोस यकीन हुस्न यार आँख कुसूर शिकायत इल्तिजा हाल शायरी


1601
मैं इस काबिल तो नहीं...
कि कोई अपना समझे,
पर इतना यकीन हैं,
कोई अफसोस जरूर करेगा...
मुझे खो देनेके बाद.......l

1602
देखा जो हुस्न-ए-यार,
तबीअत मचल गई...
आँखोंका था कुसूर,
छुरी दिलपें चल गई.......

1603
न तुमसे कोई शिकायत हैं,
बस इतनीसी इल्तिजा हैं...
जो हाल कर गये हो,
कभी आके देख जाना.......

1604
मुँह कि बातें सुने हर कोई,
दिलका दर्द जाने कौन...
आवाजोंके बाज़ारोंमें,
खामोशी पहचाने कौन.......

1605
इस तरह मिली वो मुझे,
सालोंके बाद,
जैसे हक़ीक़त मिली हो,
ख़यालोंके बाद,
मैं पूछता रहा उससे,
ख़तायें अपनी,
वो बहुत रोई,
मेरे सवालोंके बाद...l