2801
गझल: बशीर बद्र
खुदको इतना
भी मत बचाया
कर,
बारिशें
हो तो भीग
जाया कर।
चाँद लाकर कोई
नहीं देगा,
अपने चेहरेसे जगमगाया
कर।
दर्द हीरा हैं,
दर्द मोती हैं,
दर्द आँखोंसे मत
बहाया कर।
कामले कुछ
हसीन होंठोसे,
बातों-बातोंमें मुस्कुराया
कर।
धूप मायूस लौट जाती
हैं,
छतपें किसी
बहाने आया कर।
कौन कहता हैं दिल मिलानेको,
कम-से-कम
हाथ तो मिलाया
कर।
2802
तू सचमुच जुड़ा हैं,
गर मेरी जिंदगीके साथ...
तो कबूल कर
मुझको,
मेरी हर
कमीके साथ
!!!
2803
लफ़्ज़ोंकी प्यास
किसे हैं...!
मुझे तो तुम्हारी,
खामोशियोंसे भी
इश्क़ हैं.......!
2804
बारिशकी बूंदोंमें,
दिखती हैं तस्वीर
तेरी...
आज फिर भीग
बैठे,
तुझसे मिलनेकी चाहतमें...!
2805
दीदारकी 'तलब' हो तो,
नज़रे जमाये रखना 'ग़ालिब'...
क्युकी, 'नकाब' हो या,
'नसीब'...सरकता जरुर हैं...!