4306
दो बुँदे क्या बरसी,
चार बादल क्या
छा गये;
किसीको जाम,
तो किसीको
वो याद
आ गये...!
4307
तपिश और बढ़
गई,
इन चंद
बूंदोंके बाद...
काले स्याह बादलने
भी,
बस यूँ
ही बहलाया मुझे...
4308
रहने दो अब
कि,
तुम भी
मुझे पढ़ ना
सकोगे...
बरसातमें कागजकी तरह,
भीग
गया हूँ.......
4309
हमारे शहर आ
जाओ,
सदा बरसात
रहती हैं...
कभी बादल बरसते
हैं,
कभी आँखें
बरसतीं हैं.....
4310
चेहरेपे मेरे जुल्फोंको,
बिखराओ
किसी दिन...
क्या रोज़ गरजते
हो,
बरस जाओ
किसी दिन...!