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9 March 2018

2451 - 2455 मुहब्बत बुरा अच्छा अमीर शराब कीमत ग़म बात दहलीज चाहत सिलसिला अजीब शायरी


2451
"बुरा" हमेशा हीं बनता हैं,
 जो "अच्छा" बनके टूट चुका होता हैं...

2452
बहुत अमीर होती हैं,
बोतल शराबकी...
कीमत चाहे जो हो;
सारे ग़म खरीद लेती हैं...

2453
जरूरी नहीं
की हर बातपर तुम मेरा कहा
मानों,
दहलीजपर रख दी
हैं चाहत, आगे तुम जानो..!!

2454
काश तुम कभी...
ज़ोरसे गले लगाकर कहो,
"डरते क्यों हो पागल,
तुम्हारी ही तो हूँ l"

2455
उसकी मुहब्बतका सिलसिला भी,
क्या अजीब हैं...
अपना भी नहीं बनाती ,
और किसीका होने भी नहीं देती...!