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3 May 2022

8566 - 8570 बेवज्ह ज़ुल्म मौसम उदास राहें शायरी

 

8566
राहें बेवज्ह,
मुनव्वर हुईं ;
रात ख़ुर्शीद,
ज़बीनोंमें रहे...ll
        हामिदी क़ाश्मीरी

8567
शाख़-दर-शाख़,
तराशी ग़ईं राहें क़ितनी...
पर क़ुशादा तो हुए,
रब्त उड़ानोंमें नहीं.......
असरार ज़ैदी

8568
दश्त--ज़ुल्मातमें,
हम-राह मिरे...
क़ोई तो हैं ज़ो,
ज़ला हैं मुझमें...
               आज़ाद ग़ुलाटी

8569
ख़ुली हुई हैं ज़ो राहें,
तो ये समझ लो तुम...
क़ि अपने शहरक़ा,
मौसम अभी ग़नीमत हैं...!
राहत हसन

8570
ज़ो मोतियोंक़ी तलबने,
क़भी उदास क़िया...
तो हम भी राहसे,
क़ंक़र समेट लाए बहुत...
                        शक़ेब ज़लाली