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29 August 2018

3221 - 3225 भूल मर्जी जमाना हकीक़त ख्वाब ख्वाहिश कोशिश खूबी हँसी रुठे मनाना बात शायरी


3221
रुठो मत, हमे मनाना नहीं आता...
दूर मत जाना, हमे बुलाना नहीं आता...
तुम भूल जाओ, तुम्हारी मर्जी;
मगर हम क्या करे...
हमे तो भुलाना भी नहीं आता...!

3222
माना के हमे आपको...
हँसाना नहीं आया,
रुठे जो कभी तो...
मनाना नहीं आया,
पर सच बात तो...
एक ये भी हैं;
जमाना गुजर गया फिर भी...
हमे आपको भुलाना ना आया...!

3223
तुम्हें भुलाना भी चाहूँ,
तो किस तरह भूलूँ;
के तुम तो फिर भी हकीक़त हो,
कोई ख्वाब नहीं.......!

3224
हम खुद आपसे,
ख्वाहिश रखते हैं,
और वो ना पूरी होनेपर...
खुद ही उसे भुलनेकी,
कोशिश करते हैं

3225
"क्या पता क्या खूबी हैं,
उनमे और क्या कमी हैं हममें;
वो हमे अपना नहीं सकते,
और हम उन्हे भुला नहीं सकते !!"