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14 July 2022

8866 - 8870 मंज़िल इश्क़ सलाम दिल अमीर राह शायरी

 

8866
हाज़ी, तू तो राहक़ो भूला,
मंज़िलक़ो क़ोई पहुँचे हैं l
दिलसा क़िबला छोड़क़े,
तूने क़ाबेक़ा एहराम क़िया ll
           ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

8867
शैख़ ले हैं राह क़ाबेक़ी,
बरहमन दैरक़ी...
इश्क़क़ा रस्ता ज़ुदा हैं,
क़ुफ़्र और इस्लामसे.......
मुनीर शिक़ोहाबादी

8868
वाह ! क़्या राह दिख़ाई हैं,
हमें मुर्शिदने...
क़र दिया क़ाबेक़ो ग़ुम,
और क़लीसा मिला.......!
                 अक़बर इलाहाबादी

8869
क़्या सैर हो बता दे,
क़ोई बुत-क़देक़ी राह...
ज़ाता हूँ राह क़ाबेक़ी,
मैं पूछता हुआ.......
क़ुर्बान अली सालिक़ बेग़

8870
अमीर ज़ाते हो,
बुतख़ानेक़ी ज़ियारतक़ो ;
पड़ेग़ा राहमें क़ाबा,
सलाम क़र लेना ll
                       अमीर मीनाई