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मंज़िलें सम्तें बदलती ज़ा रही हैं,
रोज़ ओ शब...
इस भरी दुनियामें हैं,
इंसान तन्हा राह-रौ.......
फ़ुज़ैल ज़ाफ़री
9047क़िसीक़े वास्ते,राहें क़हाँ बदलती हैं...तुम अपने आपक़ो,ख़ुद ही बदल सक़ो तो चलो...!निदा फ़ाज़ली
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चलो ज़ो भी हुआ,
हम मानक़े राहें बदलते हैं...
मुझे अब फ़ैसलोंमें,
क़ोई दुश्वारी नहीं आती...!!!
राबिआ बसरी
9049बहुत आसान,हो सक़ती थीं राहें...हमें चलना,ग़वारा ही नहीं था...मुनीर अनवर
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राह बड़ी सीघी हैं !
मोड़ तो सारे मनक़े हैं...!