Showing posts with label मलाल ग़ैर छत परिन्दे शायरी. Show all posts
Showing posts with label मलाल ग़ैर छत परिन्दे शायरी. Show all posts

10 February 2017

952 मलाल ग़ैर छत परिन्दे शायरी


952
जो उड़ गए परिन्दे,
उनका मलाल क्या करूँ फ़राज़। 
यहां तो पाले हुए भी,
ग़ैरोंके छतोंपर उतरते हैं......