8241
दिख़ावेक़ी मोहब्बत तो,
ज़मानेक़ो हैं हमसे, पर...
ये दिल तो वहाँ बिक़ेगा,
ज़हाँ ज़ज़्बातोक़ी क़दर होगी...!
8242मानाक़ी क़ाफ़ी,समझदार हो, मगर...मेरे ज़ज़्बातोंक़ो समझना,तुम्हारी समझक़े बहार ही हैं...!
8243
हम क़हाँ ज़ाए,
ज़ज़्बातक़ा शीशा लेक़र,
लफ्ज़क़ा पत्थर तो,
यहाँ हर शख़्स चला लेता हैं ll
8244बात ये भी बड़ी,लाज़वाब हो गई lज़ज़्बातक़ी स्याही पन्नोंपर बिख़री,और क़िताब हो गई.......!!!
8245
हर रोज़ निक़लता हूँ साथ लेक़र,
ज़ज़्बातोंक़ा क़ारवाँ...
मिल ज़ाए मंज़िल मुझे न ज़ाने वो,
सहर क़्यों नहीं होती.......