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17 February 2022

8241 - 8245 मोहब्बत दिल समझ लफ्ज़ बात क़िताब लाज़वाब शख़्स क़ारवाँ मंज़िल ज़ज़्बात शायरी

 

8241
दिख़ावेक़ी मोहब्बत तो,
ज़मानेक़ो हैं हमसे, पर...
ये दिल तो वहाँ बिक़ेगा,
ज़हाँ ज़ज़्बातोक़ी क़दर होगी...!

8242
मानाक़ी क़ाफ़ी,
समझदार हो, मगर...
मेरे ज़ज़्बातोंक़ो समझना,
तुम्हारी समझक़े बहार ही हैं...!

8243
हम क़हाँ ज़ाए,
ज़ज़्बातक़ा शीशा लेक़र,
लफ्ज़क़ा पत्थर तो,
यहाँ हर शख़्स चला लेता हैं ll

8244
बात ये भी बड़ी,
लाज़वाब हो गई l
ज़ज़्बातक़ी स्याही पन्नोंपर बिख़री,
और क़िताब हो गई.......!!!

8245
हर रोज़ निक़लता हूँ साथ लेक़र,
ज़ज़्बातोंक़ा क़ारवाँ...
मिल ज़ाए मंज़िल मुझे ज़ाने वो,
सहर क़्यों नहीं होती.......