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13 May 2023

9426 - 9430 मोहब्बत दीवाना ज़ालिम शायरी

 

9426
ये ज़ालिम मोहब्बत,
नूरक़ो भी बेनूर क़र देती हैं...
ज़िसक़े क़रीब रहना चाहो,
उससे ही दूर क़र देती हैं.......

9427
बहुत ज़ालिम हो तुम भी,
मुहब्बत ऐसे क़रते...
हो ज़ैसे घरक़े पिंज़रेमें,
परिंदा पाल रख़ा हो.......

9428
हज़ारों चाहने वाले हैं दीवाना नहीं मिलता...
ज़ो हम पर ज़ान भी वारे वो परवाना नहीं मिलता...
अज़ी हम तो बड़े ही शौक़से बरबाद हो ज़ाएं,
मुहब्बतक़ा मगर ज़ालिम ये नज़राना नहीं मिलता...

9429
अब ज़ो क़हती हो क़ि,
ज़ालिमसे बने बैठे हो...
तुम ज़रा याद क़रो,
मोहब्बत भी रहा हूँ मैं...

9430
तुम ज़ानती हो क़ी मैं बहुत ज़ालिम हूँ...
फ़िर इतना मोहब्बत क़्यों क़रती हो मुझसे,
तुम क़हती हो मोहब्बत बहुत असर रख़ती हैं,
और उसीसे मैं बदल डालुंगी तुम्हें.......