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22 December 2018

3656 - 3660 मोहब्बत फुरसत चाह इजाज़त खून कतरे आँख जुदा बेशक कसूर तकदीर बेवफा शायरी


3656
फुरसतमें करेगें हिसाब,
तुझसे -बेवफा...
अभी तो उलझे हैं,
खुदको सुलझानेमें...!

3657
यूँ तो कोई तन्हा नहीं होता,
चाहकर भी कोई किसीसे जुदा नहीं होता...
मोहब्बतको मजबूरिया ले डूबती हैं,
वरना हर कोई बेवफा नहीं होता...!

3658
इज़ाज़त हो तो तेरे चहेरेको,
देख लूँ जी भरके...
मुद्दतोंसे इन आँखोंने,
कोई बेवफा नहीं देखा.......!

3659
बेवफा कहनेसे पहले,
मेरी रग रगका खून निचोड़ लेना;
कतरे कतरेसे वफ़ा ना मिले,
तो बेशक मुझे छोड़ देना...

3660
चाँदका क्या कसूर अगर रात बेवफा निकली
कुछ पल ठहरी और फिर चल निकली
उनसे क्या कहे वो तो सच्चे थे
शायद हमारी तकदीर ही हमसे खफा निकली