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28 November 2018

3591 - 3595 मोहब्बत महफ़िल गम अहसास शाम लफ्ज ग़ज़ल वक्त ज़ख्म बर्बाद पीने पिलानेकी शायरी हैंहींमेंपें


3591
महफ़िलमें इस कदर,
पीनेका दौर था;
हमको पिलानेके लिए सबका जोर था,
पी गए हम इतनी यारो.
के कहनेपर, अपना गौर था,
ज़मानेका गौर था...

3592
पीनेमें क्या गम हैं,
पीके जीनेमें क्या गम हैं;
हमने पी नही हुई हैं तो क्या,
पीनेका अहसास तो हम मे हैं...

3593
आज लफ्जोंको मैने,
शामको पीनेपें बुलाया हैं...
बन गयी बात तो,
ग़ज़ल भी हो सकती हैं...!

3594
काश वो,
"हल्दी" कहीं मिल जाये
जिसे पीनेसे...
वक्तका दिया हर ज़ख्म भर जाये.......

3595
उसने कहा हमसे, 
हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे...
हमने मुस्कुराके पूछा,
क्या तुम भी मोहब्बत करोगे अब हमसे...?