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17 June 2018

2886 - 2890 मोहब्बत वफा आँख नज़र याद मजार सज़दे मंज़र दर्द किस्मत खामोश नसीब लकीर शायरी


2886
मेरी मोहब्बतकी मजार तो,
आज भी वहीं हैं,
बस तेरे ही सज़देकी,
जगह बदल गई.......

2887
उन गलियोंसे जब गुज़रे,
तो मंज़र अजब था;
दर्द था मगर...
वो दिलके करीब था !!!

2888
जिसे हम ढूँढ़ते थे,
अपनी हाथोंकी लकीरोंमें;
वो किसी दूसरेकी किस्मत,
किसी औरका नसीब था...।

2889
तेरी यादोंको पसन्द गई हैं,
मेरी आँखोंकी नमी,
हँसना भी चाहूँ तो...
रूला देती हैं तेरी कमी!

2890
वो सुना रहे थे,
अपनी वफाओंके किस्से...,
हम पर नज़र पड़ी तो,
खामोश हो गए.......