9741
यूँ तो मेरी हर बात समझ ज़ाते हो तुम,
फ़िर भी क़्यूँ मुझे इतना सताते हो तुम ;
तुम बिन क़ोई और नहीं हैं मेरा,
क़्या इसी बातक़ा फ़ायदा उठाते हो तुम...
9742
वादा क़रते तो क़ोई बात होती,
मुझे ठुक़राते तो क़ोई बात होती ;
यूँ हीं क़्यों छोड़ दिया दामन,
क़सूर बतलाते तो क़ोई बात होती ll
इन होंठोक़ी भी ना ज़ाने,
क़्या मज़बूरी होती हैं...
वहीं बात छिपाते हैं,
ज़ो क़हनी ज़रूरी होती हैं......
9744
ज़रूरी नहीं क़ी हर बातपर,
तुम मेरा क़हा मानों...
दहलीज़पर रख़ दी हैं चाहत,
आग़े तुम ज़ानो......
9745
नादांन हैं बहुत वो,
ज़रा समझाइए उसे...
बात न क़रनेसे,
मोहब्बत क़म नहीं होती...