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16 July 2019

4491 - 4495 याद उम्र लाजबाव ख्वाहिशें चाहत आज़ाद जख्म जिंदगी बात सफर शायरी


4491
तेरी गलीका वो पहला सफर,
आज भी याद हैं मुझे...
मैं कोई खोजकर्ता नही था,
पर मेरी खोज लाजबाव थी...!

4492
"उम्र बिना रुके,
सफर कर रही हैं;
और हम ख्वाहिशें लेकर,
वहीं खड़े हैं..."

4493
आज तक उस थकानसे,
दुख रहा हैं बदन...
एक सफर किया था,
मैने ख्वाहिशोंके साथ...

4494
अजीब सफर हैं,
तेरी चाहतका...
तू साथ भी नहीं और,
हम आज़ाद भी नहीं...!

4495
जख्म कहां कहांसे मिले हैं...
छोड़ इन बातोको,
जिंदगी तु तो ये बता,
सफर कितना बाकी हैं.......!