1636
इस दुनियाँमें,
अजनबी रहनाही ठीक हैं...
लोग बहुत तकलीफ देते हैं,
अक्सर अपना बनाकर...!!
1637
इन्सान सब कुछ भूल सकता हैं,
सिवये उन पलोंके;
जब उसे अपनोकी ज़रूरत थी,
और वे साथ नहीं थे .......
1638
जो जले थे हमारे लिऐ,
बुझ रहे हैं वो सारे दिये,
कुछ अंधेरोंकी थी साजिशें,
कुछ उजालोंने धोखे दिये...!
1639
दिल नहीं चेहरा देखते हैं,
आजकलके लोग;
हकीकतसे नहीं फरेबसे,
मुहब्बत करते हैं...
1640
न जाने क्यों ये रात,
उदास कर देती हैं हर रोज...!
महसूस यूँ होता हैं जैसे,
बिछड़ रहा हैं कोई धीरे धीरे...!