3686
खुशबू हवाकी
चुपकेसे,
कानोंमें कह गई...
पास तो नहीं
हो मगर,
दिलमें बसे हो
तुम...!
3687
दिल चाहता हैं कि
फ़िर,
अजनबी बनकर
देखें...
तुम तमन्ना बन जाओ,
हम उम्मीद बनकर
देखें...!
3688
मेरे दिलसे
निकलनेका,
रास्ता
न ढूंढ सके
तुम...
और कहते थे
तुम्हारी,
रग रगसे वाकिफ़ हैं
हम...
3689
सारे शहरको
इस बातकी
खबर हो गयी...
क्यो ना सजा
दे
इस कमबख्त
दिलको...
दोस्तीका इरादा
था
और मोहोब्बत
हो गयी...!
3690
रास्ते खुद ही
तबाहीके निकाले
हमने,
कर दिया दिल
किसी पत्थरके
हवाले हमने;
हाँ मालूम हैं क्या
चीज़ हैं मोहब्बत
यारो...
अपना ही घर
जलाकर देखें
हैं उजाले हमने।