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2 July 2022

8821 - 8825 राह याद सहरा हौसला दुआ मंज़िल शाम मुसाफ़िर शायरी

 

8821
मुसाफ़िर हो तो सुन लो,
राहमें सहरा भी आता हैं l
निक़ल आए हो घरसे,
क़्या तुम्हें चलना भी आता हैं ll
                          शहज़ाद अहमद

8822
होता हैं मुसाफ़िरक़ो,
दो-राहेंमें तवक़्क़ुफ़...
रह एक़ हैं उठ ज़ाए,
ज़ो शक़ दैर--हरमक़ा...
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8823
ज़ुग़नुओंसे सज़ ग़ईं राहें,
क़िसीक़ी यादक़ी...
दिनक़ी चौख़टपर,
मुसाफ़िर शामक़े आने लग़े...!!!
                          फ़ारूक़ शफ़क़

8824
सफ़रक़ा हौसला क़ाफ़ी हैं,
मंज़िलतक़ पहुँचनेक़ो...
मुसाफ़िर ज़ब अक़ेला हो तो,
राहें बात क़रती हैं.......!
नसीम निक़हत

8825
राहक़ा शज़र हूँ मैं,
और इक़ मुसाफ़िर तू ;
दे क़ोई दुआ मुझक़ो,
ले क़ोई दुआ मुझसे ll
                   सज्जाद बलूच