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मैं उनपर चलक़े भी,
क़्यों मंज़िलोंक़ा हो नहीं पाया...
ज़ो राहें ज़िंदग़ीक़े,
पेंच-ओ-ख़ममें रक़्स क़रती हैं...
नवेद क़्यानी
9057फ़नाक़ी मंज़िलोंपर,ख़त्म हैं राहें अनासिरक़ी...यहीं अब देख़ना हैं,रूह ज़ाती हैं क़हाँ मेरी.......हीरा लाल फ़लक़ देहलवी
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क़ोई मंज़िल तो नहीं,
राहें मग़र हैं शाहिद...
ख़ुदक़ो पानेक़े लिए,
क़ितना चला हूँ मैं भी...
सय्यद नदीम क़माल
9059क़िन मंज़िलोंक़ी ताक़में,ये क़ारवान-ए-ज़ीस्त...राहें नई नई हैं,ग़ुलिस्ताँ नए नए.......!क़ाज़ी मुस्तक़ीमुद्दीन सहर
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राहें धुएँसे भर ग़ईं,
मैं मुंतज़िर रहा...
क़रनोंक़े रुख़ झुलस ग़ए,
मैं ढूँढता फ़िरा.......
मज़ीद अमज़द