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16 June 2023

9576 - 9580 लफ्ज़ ज़बाँ आँख़ दास्ताँ सबब ख़ामोशी शायरी

 
9576
लफ्ज़ोक़ो तो,
दुनिया समझती हैं...!
क़ाश क़ोई,
ख़ामोशीभी समझता...!!!

9577
भीगी आँख़ोसे मुस्क़ुरानेक़ा,
मज़ा और हैं...
हँसते हँसते पलक़े भिगोनेक़ा,
मज़ा और हैं...
बात क़हक़े तो,
क़ोई भी समझ लेता हैं.,;
ख़ामोशीक़ो क़ोई समझे तो,
मज़ा और हैं.......

9578
चलो अब ज़ाने भी दो,
क़्या क़रोगे दास्ताँ सुनक़र...
ख़ामोशी तुम समझोगे नहीं,
और बयाँ हमसे होगा नहीं.......

9579
हरएक़ बात,
ज़बाँसे क़हीं नहीं ज़ाती...
ज़ो चुपक़े बैठे हैं,
क़ुछ उनक़ी बात भी समझो...
महशर इनायती

9580
क़ोई ज़ब पूछ बैठेगा,
ख़ामोशीक़ा सबब तुमसे...
बहुत समझाना चाहोगे,
मगर समझा पाओगे.......