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12 June 2022

8721 - 8725 वादा तमन्ना दिल इश्क़ महबूब निग़ाह सहरा राहें शायरी

 

8721
निग़ाहोंमें शम--तमन्ना ज़लाक़र,
तक़ी होंग़ी तुमने भी राहें क़िसीक़ी...l
क़िसीने तो वादा क़िया होग़ा तुमसे,
क़िसीने तो तुमक़ो रुलाया तो होग़ा...ll
                                        अख़्तर आज़ाद

8722
हमें पता हैं घने अँधेरोंमें,
घिर ग़ई हैं हमारी राहें...
अग़र ये सच हैं हमारे दिलमें,
ये रौशनीक़ा अलाव क्यों हैं.......?
ज़ावेद उल्फ़त

8723
तिरे इश्क़में हमेशा,
मिलीं पेचदार राहें...
क़भी हम भटक़ भटक़क़र,
रह--आम तक़ पहुँचे.......
                           रशीद रामपुरी

8724
अब इतनी बंद नहीं,
ग़म-क़दोंक़ी भी राहें...
हवा--क़ूच--महबूब,
चल तो सक़ती हैं.......
फ़िराक़ गोरख़पुरी

8725
ज़ुनूँक़ा पाँव पक़ड़क़र,
ख़िरद बहुत रोई...
तिरी ग़लीसे ज़ो सहराक़ी,
राह ली मैने.......
                       बहाउद्दीन क़लीम