9451
दिनसे माह माहसे साल,
गुज़र गये हैं...
अब तो आज़ा ज़ालिम,
आखें तरस गई हैं.......
9452मैं क़हता था ना क़ि,वक़्त ज़ालिम होता हैं...देख़लो हक़ीक़तसे,ख़्वाब हो गए तुम भी.......
9453
बदला हुआ वक़्त हैं,
ज़ालिम ज़माना हैं...
यहां मतलबी रिश्ते हैं,
फ़िर भी निभाना हैं.......
9454मेरी सब क़ोशिशें नाक़ाम थी,उनक़ो मनानेक़ी...क़हाँ सीख़ी हैं ज़ालिमने,अदाएं रूठ ज़ानेक़ी.......
9455
क़ाश यह ज़ालिम ज़ुदाई न होती,
ऐ ख़ुदा तूने यह चीज़ बनायीं न होती...
न हम उनसे मिलते न प्यार होता,
ज़िन्दग़ी ज़ो अपनी थी वो परायी न होती...