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12 September 2022

9121 - 9125 शख़्स दिल शर्म मोहब्बत मसीह आफ़्ताब ज़िंदग़ी ख़ंज़र वास्ते शायरी

 

9121
मुद्दत हुई इक़ शख़्सने,
दिल तोड़ दिया था...l
इस वास्ते अपनोंसे,
मोहब्बत नहीं क़रते...ll
                       साक़ी फ़ारुक़ी

9122
शायद ज़ाए क़भी देख़ने,
वो रश्क़--मसीह...
मैं क़िसी और से,
इस वास्ते अच्छा हुआ...
अनवर ताबाँ

9123
मुँह आपक़ो,
दिख़ा नहीं सक़ता हैं शर्मसे...
इस वास्ते हैं,
पीठ इधर आफ़्ताबक़ी.......
                       इमाम बख़्श नासिख़

9124
आमद--शुद कूचेमें,
हम उसक़े क़्यूँ क़रें मानिंद--नफ़स ;
ज़िंदग़ी अपनी ज़ानते हैं,
इस वास्ते आते ज़ाते हैं ll
शाह नसीर

9125
ज़ेर--ख़ंज़र,
मैं तड़पता हूँ फ़क़त इस वास्ते l
ख़ून मेरा उड़क़े,
दामन-ग़ीर हो ज़ल्लादक़ा ll
                             ज़लील मानिक़पूरी