9421
सुनो ज़ालिम बहुत भाता हैं,
मुझे ये सबेरा...
बस सुबहका सूरज बनकर...
तुम मेरे साथ रहो.......
9422इतने ज़ालिम न बनो,कुछ तो कदर करो...तुम पर मरते हैं तो,क्या मार ही डालोगे.......
9423
बड़े ज़ालिम थे मेरे सनम,
मोहब्बतकी लत लगाकर,
मुझे तनहा कर गया.......
9424ये उदास शाम और,तेरी ज़ालिम याद...खुदा खैर करे,अभी तो रात बाकि हैं...
9425
कोई और कर्ज होता,
तो उतार देता...
ये ज़ालिम इश्क़का कर्ज,
उतारा नही ज़ाता......