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क़िसने सहरामें,
मिरे वास्ते रक्ख़ी हैं ये छाँव...
धूप रोक़े हैं,
मिरा चाहने वाला क़ैसा...?
9162बुत समझते थे,ज़िसक़ो सारे लोग़...वो मिरे वास्ते,ख़ुदासा था.......!सलमान अख़्तर
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तुम्हारे वास्ते सब क़ुछ हैं,
मेरे बंदा-नवाज़...
मग़र ये शर्त क़ि,
पहले पसंद आओ मुझे.......
महबूब ख़िज़ां
9164तुम्हें भी मुझमें न शायद,वो पहली बात मिले...ख़ुद अपने वास्ते,अब क़ोई दूसरा हूँ मैं.......!आज़ाद ग़ुलाटी
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बने हुए हैं,
अज़ाएब-घरोंक़ी ज़ीनत हम l
पर अपने वास्ते अपना ही,
दर नहीं ख़ुलता.......ll
फ़ानी ज़ोधपूरी