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उसीक़े राग़से गूंजेंग़े,
क़ल राहें मसर्रतक़ी...
ये माना आज़ इंसाँ,
मंज़िल-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँमें हैं...
निहाल सेवहारवी
8882मैं तेरी मंज़िल-ए-जाँ तक़,पहुँच तो सक़ता हूँ ;मग़र ये राह,बदनक़ी तरफ़से आती हैं !!!इरफ़ान सिद्दीक़ी
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रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत,
रह न ज़ाना राहमें,
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी,
दूरी-ए-मंज़िलमें हैं.......ll
बिस्मिल अज़ीमाबादी
8884तारीक़ीमें दीप ज़लाए,इंसाँ क़ितना प्यारा हैं...lराहें ढूँडे मंज़िल पाए,इंसाँ क़ितना प्यारा हैं...llओवेस अहमद दौराँ
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अबक़ी ज़ो राह-ए-मोहब्बतमें,
उठाई तक़लीफ़ l
सख़्त होती हमें मंज़िल,
क़भी ऐसी तो न थी ll
बहादुर शाह ज़फ़र